Sunday, August 11, 2019
Monday, February 17, 2014
Saturday, February 15, 2014
जरी कारीगरों का हुआ निशुल्क नेत्र परीक्षण
जरी कारीगरों का हुआ निशुल्क नेत्र परीक्षण
तितली फाॅर चिल्ड्रेन ने आयोजित किया नेत्र परीक्षण शिविर
बरेली। तितली सोसाइटी फाॅर चिल्डेªन वेलफेयर ने जरी कारीगरों के लिए निशुल्क नेत्र परीक्षण शिविर आयोजित किया। शिविर में मोहन आई इंस्टीट्यूट के नेत्र रोग विशेषज्ञ डा. विकास सिन्हा ने ग्राम परसौना में आयोजित शिविर में काला पानी, मोतियाबिन्द व अन्य नेत्र रोगों को परीक्षण किया। शिविर में लगभग सौ कारीगरों ने अपनी आखों का चैकअप कराया। नेशनल विनियर के सौजन्य से जरूरतमंदों को निशुल्क चश्मों का वितरण किया तथा मुफ्त दवाएं भी वितरित कीं गई। इस मौके पर फरहा नाज, अंकुश शर्मा, शिवम् व तितली संस्था के सचिव फहीम करार व गुल मुहम्मद मदार का विशेष सहयोग रहा।
Monday, August 26, 2013
Tuesday, June 18, 2013
ब्रिटेन के शहर लेस्टर में एक कविता कार्यशाला....
ब्रिटेन के शहर लेस्टर में एक कविता कार्यशाला....
मित्रो
ब्रिटेन में बसने के बाद हिन्दी भाषा और साहित्य के प्रति बहुत से कार्य करने का अवसर मिलता रहा है। किन्तु हाल ही का अनुभव एक मामले में अनूठा रहा जहां लेस्टरशायर के लिण्डन प्राइमरी स्कूल के बच्चों के साथ मुझे एक कविता कार्यशाला (Poetry Workshop) करने का अवसर मिला। इस कार्यशाला का आयोजन Leicester Multi Cultural Association द्वारा किया गया था। यहां मेरा लिंक-पाइन्ट श्री विनोद कोटेचा हैं।
इस प्रोजेक्ट के तहत मुझे अपनी ही पचास कविताओं का हिन्दी से अंग्रेज़ी में अनुवाद करना है और लेस्टर के स्कूली बच्चों के साथ एक कविता कार्यशाला भी करनी थी।
स्कूल के प्राध्यापक श्री मुहम्मद ख़ान, नैरोबी से ब्रिटेन आए एक भारतीय मूल के व्यक्ति हैं जिनके साथ हुई मुलाक़ात मुझे बरसों तक याद रहेगी। विद्यार्थियों के प्रति उनका पॉज़िटिव और सृजनात्मक रवैया देख कर बहुत कुछ सीखने को मिला। मुझे सबसे अधिक हैरानी यह देख कर हुई की श्री ख़ान को प्रत्येक विद्यार्थी का नाम याद था और वे सभी विद्यार्थियों को उनके पहले नाम से पुकार रहे थे। उस स्कूल में गोरे, काले, चीनी, अरबी, एव भारतीय उपमहाद्वीव आदि सभी स्थानों के बच्चे मौजूद थे
।
स्कूल के मुख्य द्वार पर गुजराती, उर्दू, पंजाबी, अरबी, एवं अंग्रेज़ी में स्वागतम लिखा था। थोड़ा असहज हो गया क्योंकि वहां हिन्दी नदारद थी। मेरा प्रयास रहेगा कि जल्दी ही वहां हिन्दी भाषा में भी स्वागतम लिखा जाए।
मुझे पंद्रह-पंद्रह विद्यार्थियों के दो गुटों के साथ कविता की कार्यशाला करनी थी। उन्हें कविता की यात्रा सरल शब्दों में बताते हुए ब्रिटेन के हिन्दी कवियों के विषय में जानकारी देनी थी। उन्हें यह भी समझाना था कि कविता की बुनावट कैसी होती है; कविता के शब्द कैसे होते हैं; कविता में शब्दों की मित्वययता का महत्व क्या है... आदि, आदि। प्रवासी कविता किस प्रकार प्रवासियों एवं स्थानीय लोगों में एक पुल का काम कर सकती है।
मैनें विद्यार्थियों को दावत दी कि वे चाहें तो अपनी मातृभाषा यानि कि गुजराती, उर्दू, हिन्दी या अरबी भाषा में कविता लिखने का प्रयास करें। मगर मैनें पाया कि अधिकतर विद्यार्थी अपनी मातृभाषा समझ तो पाते हैं... किसी तरह थोड़ी थोड़ी बोल भी लेते हैं... मगर लिखने का अभ्यास उन्हें बिल्कुल भी नहीं है। फिर भी एक बच्ची ने अपनी मातृभाषा अरबी में कविता की पहली दो पंक्तियां लिखीं और बाक़ी की कविता अंग्रेज़ी में पूरी की... मैनें अपनी हिन्दी कविताओं के साथ साथ उनका अंग्रेज़ी अनुवाद भी पढ़ा।
कार्यशाला खुले में स्कूल द्वारा निर्मित एक छोटे से जंगल में भी हुई... फिर एक गोलमेज़ के इर्दगिर्द भी हुई और अंततः स्कूल के एसेम्बली हॉल में जा कर मेरे अंतिम वक्तव्य के साथ समाप्त हुई जहां बच्चों ने अपनी कर्यशाला में लिखी कविताएं पूरे आत्मविश्वास से सुनाईं।
कुल मिला कर यह एक अद्भुत अनुभव रहा। मैं इसके लिये Leicester Multi Cultural Association के श्री विनोद कोटेचा (कोषाध्यक्ष), श्री गुरमैल सिंह (अध्यक्ष), सुनीता परमार, प्राध्यापक श्री मुहम्मद ख़ान एवं बीबीसी के भूतपूर्व पत्रकार श्री दीपक जोशी का धन्यवाद करना चाहूंगा।
मित्रो
ब्रिटेन में बसने के बाद हिन्दी भाषा और साहित्य के प्रति बहुत से कार्य करने का अवसर मिलता रहा है। किन्तु हाल ही का अनुभव एक मामले में अनूठा रहा जहां लेस्टरशायर के लिण्डन प्राइमरी स्कूल के बच्चों के साथ मुझे एक कविता कार्यशाला (Poetry Workshop) करने का अवसर मिला। इस कार्यशाला का आयोजन Leicester Multi Cultural Association द्वारा किया गया था। यहां मेरा लिंक-पाइन्ट श्री विनोद कोटेचा हैं।
इस प्रोजेक्ट के तहत मुझे अपनी ही पचास कविताओं का हिन्दी से अंग्रेज़ी में अनुवाद करना है और लेस्टर के स्कूली बच्चों के साथ एक कविता कार्यशाला भी करनी थी।
स्कूल के प्राध्यापक श्री मुहम्मद ख़ान, नैरोबी से ब्रिटेन आए एक भारतीय मूल के व्यक्ति हैं जिनके साथ हुई मुलाक़ात मुझे बरसों तक याद रहेगी। विद्यार्थियों के प्रति उनका पॉज़िटिव और सृजनात्मक रवैया देख कर बहुत कुछ सीखने को मिला। मुझे सबसे अधिक हैरानी यह देख कर हुई की श्री ख़ान को प्रत्येक विद्यार्थी का नाम याद था और वे सभी विद्यार्थियों को उनके पहले नाम से पुकार रहे थे। उस स्कूल में गोरे, काले, चीनी, अरबी, एव भारतीय उपमहाद्वीव आदि सभी स्थानों के बच्चे मौजूद थे
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स्कूल के मुख्य द्वार पर गुजराती, उर्दू, पंजाबी, अरबी, एवं अंग्रेज़ी में स्वागतम लिखा था। थोड़ा असहज हो गया क्योंकि वहां हिन्दी नदारद थी। मेरा प्रयास रहेगा कि जल्दी ही वहां हिन्दी भाषा में भी स्वागतम लिखा जाए।
मुझे पंद्रह-पंद्रह विद्यार्थियों के दो गुटों के साथ कविता की कार्यशाला करनी थी। उन्हें कविता की यात्रा सरल शब्दों में बताते हुए ब्रिटेन के हिन्दी कवियों के विषय में जानकारी देनी थी। उन्हें यह भी समझाना था कि कविता की बुनावट कैसी होती है; कविता के शब्द कैसे होते हैं; कविता में शब्दों की मित्वययता का महत्व क्या है... आदि, आदि। प्रवासी कविता किस प्रकार प्रवासियों एवं स्थानीय लोगों में एक पुल का काम कर सकती है।
मैनें विद्यार्थियों को दावत दी कि वे चाहें तो अपनी मातृभाषा यानि कि गुजराती, उर्दू, हिन्दी या अरबी भाषा में कविता लिखने का प्रयास करें। मगर मैनें पाया कि अधिकतर विद्यार्थी अपनी मातृभाषा समझ तो पाते हैं... किसी तरह थोड़ी थोड़ी बोल भी लेते हैं... मगर लिखने का अभ्यास उन्हें बिल्कुल भी नहीं है। फिर भी एक बच्ची ने अपनी मातृभाषा अरबी में कविता की पहली दो पंक्तियां लिखीं और बाक़ी की कविता अंग्रेज़ी में पूरी की... मैनें अपनी हिन्दी कविताओं के साथ साथ उनका अंग्रेज़ी अनुवाद भी पढ़ा।
कार्यशाला खुले में स्कूल द्वारा निर्मित एक छोटे से जंगल में भी हुई... फिर एक गोलमेज़ के इर्दगिर्द भी हुई और अंततः स्कूल के एसेम्बली हॉल में जा कर मेरे अंतिम वक्तव्य के साथ समाप्त हुई जहां बच्चों ने अपनी कर्यशाला में लिखी कविताएं पूरे आत्मविश्वास से सुनाईं।
कुल मिला कर यह एक अद्भुत अनुभव रहा। मैं इसके लिये Leicester Multi Cultural Association के श्री विनोद कोटेचा (कोषाध्यक्ष), श्री गुरमैल सिंह (अध्यक्ष), सुनीता परमार, प्राध्यापक श्री मुहम्मद ख़ान एवं बीबीसी के भूतपूर्व पत्रकार श्री दीपक जोशी का धन्यवाद करना चाहूंगा।