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Wednesday, November 21, 2012

कविता : तारे जैसी तारा मछली।




 तारा मछली




तारे जैसी तारा मछली।
सिन्धु के किनारे  पर है रहती
सदा सीप को भोजन कहती।
सीप मोतियों को जो गढ़ती
उसे नहीं है पल भर सहती।
हाथ भले काटें मछुवारे
फिर भी कब मरती है मछली।
धड़  इसका यदि कट जाये तो
बेचारी ये मर जाती है।
हाथ काट पानी में डालो
जिन्दा रह कर मर जाती है।
स्टार फिश यह रही अनोखी
लगती है ये न्यारी मछली।
     - महाश्वेता चतुर्वेदी

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