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Wednesday, December 26, 2012

बाल गीत : जाड़ों की ये सर्द चाल है




नन्मुन चुनंमुन बुरा हाल है,
जाड़ों की ये सर्द चाल है।


सूरज दादा कहाँ  सो गए ,
दिन भर ढूंढा कहाँ खो गए ।


रात -रात भर कोहरा बरसे,
कैसे कोई निकले घर से।


ओढें कम्बल और रजाई ,
फिर भी ठंड सताए भाई .


स्वेटर मोज़े और दस्ताने,
पैंट कोट ही लगें सुहाने।


नन्मुन आइसक्रीम मत खाना,
बिना कैप बाहर मत जाना।


शिखा चंद्रा

Sunday, December 16, 2012

मुबीन कैफ : कोषाध्यक्ष


मुबीन कैफ : कोषाध्यक्ष 

डॉ करुणा पाण्डे





डॉ  करुणा पाण्डे : वरिष्ठ उपाध्यक्ष 

डॉ मोनिका अग्रवाल : अध्यक्ष

डॉ मोनिका अग्रवाल : अध्यक्ष


निर्मला सिंह : संरक्षक







हिंदी की चर्चित महिला कथाकार बाल कहानी लेखन के 
नए प्रयोगों के लिए चर्चित .

जन्म : 9 अप्रैल , 1943

प्रकाशित बाल साहित्य : 
बाल कविता संग्रह : इक्कीस बालगीत 
हम हैं हिन्दुस्तानी

बाल कहानी संग्रह :थैंक यू मम्मी सॉरी पापा 
 पापा पिकनिक चलो न, आसमान से रुई गिर रही है 
वाह ! वाह ! बड़े तीरंदाज हैं 

संपर्क : १८५ , सिविल लाइन , बरेली



जानकारी : “नन्हें मुन्नों के अखबार”



आज फ़ेसबुक पर प्रदीप सौरभ जी से किसी ने “नन्हें मुन्नों के अखबार” के बारे में पूछा था। बच्चों के लिये हिन्दी में प्रकाशित यह पहला अखबार था। इसे प्रदीप सौरभ और अजामिल जी ने 1981 के आस पास इलाहाबाद से निकालना शुरू किया था।पता नहीं प्रदीप भाई के पास इसकी प्रति है कि नहीं पर मेरे पास पड़ी थी। इसे स्कैन करके लगा रहा हूं।






http://www.facebook.com/photo.php?fbid=260716580608988&set=a.260716477275665.78925.100000119440134&type=1&theater

शोक समाचार : प्रीति गांगुली का निधन






प्रीति गांगुली हिन्दी के महान कलाकार अशोक कुमार की पुत्री और देवेन वर्मा की साली थी। जब तक मोटी रही फ़िल्मों में उन्हें कॉमेडी रोल मिलते रहे। उनके खेल खेल में और खट्टा मीठा वाले किरदार वर्षों तक लोगों को याद रहे। फिर उन्होंने 50 किलो वज़न कम कर दिया और उन्हें फ़िल्में मिलनी बन्द हो गईं। 17 मई 1953 को जन्मी प्रीति गांगुली का निधन 2 दिसंबर 2012 को हो गया और किसी को पता तक नहीं चला। गूगल सर्च में उसका एक सोलो फ़ोटो तक नहीं मिला। जो फ़ोटो मैं लगा रहा हूं उसमें उनके साथ नीतु सिंह खड़ी थीं जिन्हें मैनें क्रॉप कर दिया।

कथा यू.के. की विनम्र श्रद्धांजलि।



प्रस्तुति : तेजेन्द्र शर्मा 

Wednesday, November 21, 2012

कविता: चींटी भूल गई रस्ता

चींटी









चींटी भूल गई रस्ता,आ जा तू मेरे घर आ ।खाने को दूँगा रोटी,बेसन की मोटी-मोटी ।पानी दूँगा पीने को,फिर खेलेंगे हम दोनों 

कविता :तक् तक् थैय्या


तक् तक् थैय्या          


तक् तक् थैय्या 
  मेरे भय्या
सूखे नदिया
हंसे तलैय्या।
तक् तक् थैय्या 
मेरे भय्या 
कहीं न चारा
भूखी गय्या।
तक् तक् थैय्या
मेरे भैय्या 
मेहनत करो
कमाओ रुपय्या।।


    प्रमोद लायटू



कविता : तितली रानी-तितली रानी,





तितली रानी


तितली रानी-तितली रानी,
करती हो, दिन भर मनमानी।
बच्चों से क्यों डरती हो?
खुले गगन में उड़ती हो।
रंग-बिरंगे पंख तुम्हारे,
सुन्दर-सुन्दर, प्यारे-प्यारे।
इन पंखों पर हमें बिठाओ,
दूर गगन की सैर कराओ।
- रोहित अग्रवाल ‘

कविता



रोटी का पेड़


रोटी अगर पेड़ पर लगती
तोड़-तोड़कर खाते
तो पापा क्यो गेहूं लाते
और उन्हें पिसवाते?
रोज सवेरे उठकर हम
रोटी का पेड़ हिलाते,
रोटी गिरती टप-टप, टप-टप
उठा उठाकर खाते।

चिड़िया का घर


चिड़िया लिए चोंच में तिनका
चली बनाने घर,
कौन रहेगा, कौन रहेगा
उस घर के अंदर?
चिड़िया के दो बच्चे होंगे
उस घर के अंदर,
पर निकले तो उड़ जाएंगे
फर फर फर फर फर।

        - निरंकारदेव सेवक

कविता : तारे जैसी तारा मछली।




 तारा मछली




तारे जैसी तारा मछली।
सिन्धु के किनारे  पर है रहती
सदा सीप को भोजन कहती।
सीप मोतियों को जो गढ़ती
उसे नहीं है पल भर सहती।
हाथ भले काटें मछुवारे
फिर भी कब मरती है मछली।
धड़  इसका यदि कट जाये तो
बेचारी ये मर जाती है।
हाथ काट पानी में डालो
जिन्दा रह कर मर जाती है।
स्टार फिश यह रही अनोखी
लगती है ये न्यारी मछली।
     - महाश्वेता चतुर्वेदी

Tuesday, November 20, 2012

जानकारी: रुपये से जुड़ी रोचक जानकारी


 भारत में कागज़ी मुद्रा नोट कब और कैसे शुरू हुए


आज रुपये अर्थात नोटों को हम सभी पहचानते हैं। इन्ही नोटों से हम हमारी दैनिक उपयोगी वस्तुएं खरीदते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत में कागज़ी मुद्रा नोट कब और कैसे शुरू हुए। यह सब जानना अपने आप में बड़ा दिलचस्प है।
भारत में स्न 1700 से पहले कागज़ी मुद्रा का प्रचलन नहीं था। सर्वप्रथम 1770-80 में भारत में कागज़ी मुद्रा प्रचलित की गई थी। इसके पूर्व कौड़ियों, सोने चाँदी के सिक्कों-मुहरों, गिन्नियों के माध्यम से लेन-देन होता था।
प्रारंभ में कागज़ के नोट इंग्लैंड के हिन्दुस्तान बैंक से छपकर भारत आते थे। तब नोट कागज़ के एक तरफ ही छापे जाते थे और एक तरफ कागज़ सादा रहता था। कागज़ी मुद्रा की शुरुआती दौर में जो बैंक थे, उन बैंको को प्रेसीडेंसी बैंक के नाम से जाना जाता था। स्न 1861 तक प्रेसीडेंसी एवं प्राइवेट बैंकों द्वारा कागज़ी मुद्रा का संचालन किया जाता रहा। सन 1861 में ब्रिटिश सरकार ने एक अध्निियम ;पेपर एक्टद्ध बनाकर भारत सरकार को नोट छापने का अधिकार दे दिया, जिससे मुद्रा के संचालन पर सरकार का एकाध्किार हो गया।
प्रेसीडेंसी एवं प्राइवेट बैंकों से नोट जारी करने के अध्किार वापस ले लिये गये। परन्तु कार्यानुभव के कारण इन बैंकों को सरकारी एजेंट के रूप में नियुक्त किया गया। इन बैंकों द्वारा जारी नोटों में से कुछ के नमूने अब भारतीय रिज़र्व बैंक के संग्राहलय में देखे जा सकते हैं।
भारत में स्न 1926 में नोट छापने का पहला कारखाना लगाया गया। अब सभी तरह के कागज़ी नोटों की छपाई भारत में शुरु हो गई। इन नोटों का चलन करीब 15 वर्ष तक रहा। एक अप्रैल 1935 को भारतीय रिज़र्व बैंक की स्थापना की गई, जिसके कारण पुराने नोटों का प्रचलन कम हो गया और ध्ीरे-ध्ीरे पुराने नोटांे की जगह भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा जारी नोटांे ने ले ली।
भारतीय रिज़र्व बैंक ने अपना जो पहला नोट जारी किया, वह पाँच रुपये का था। इस पर जॉर्ज षष्म का चित्रा अंकित था। जॉर्ज षष्म श्रंखला के नोट आज़ादी तक प्रचलन में रहे। लेकिन 1950 में इन्हें बन्द कर दिया गया। आज़ादी के बाद भारतीय मुद्रा में समय-समय पर परिवर्तन होते रहे।
वर्तमान में जो नोट प्रचलन में हैं वे सिपर्फ भारतीय रिर्ज़व बैंक द्वारा ही जारी किए जाते हैं। वर्तमान में नोट छापने के कारखाने देवास ;मध्य प्रदेश, नासिक ;महाराष्ट्र, मैसूर ;कर्नाटक तथा सलबोनी ;पश्चिम बंगाल में है।
वर्तमान में 1, 2, व 5 रुपये के नोटों की जगह सिक्कों को चलन में लाया जा रहा है। 1000 के नोट को 26 साल पहले बंद कर दिया गया था, जिसे सन् 2000 में पुनः जारी किया गया।


कभी ढाई रुपये का नोट भी हुआ करता था 


30 नवंबर 1917 को पहली बार एक रुपये का नोट कागज़ी मुद्रा की दौड़ में शामिल किया गया। आज हमें अजीब लग सकता है कि ढाई रुपये का नोट भी कभी प्रचलन में रहा है, परंतु ये सच है कि ढाई रुपये के नोट को भी कागज़ी मुद्रा में शामिल  किया गया था, परंतु ये ज़्यादा समय तक अस्तित्व में नहीं रहे। 1926 में एक रुपये और ढाई रुपये के नोटो को बंद कर दिया गया।
भारत में सन् 1926 में महाराष्ट्र नासिक जिले में भारतीय    सुरक्षा प्रेस के नाम से नोट छापने का पहला कारखाना लगाया गया था, जिामें 5, 10, 20, 50, 100, 500, 1000 व 10,000 रुपये के नोट छापे जाते थे।
एक रुपये का नोट अगस्त 1940 में पुनः जारी किया गया। ढाई रुपये के नोट को भी पुनः जारी करने का विचार किया गया। अंततः उसकी जगह दो रुपये का नोट 3 मार्च 1943 को जारी किया गया।
एक रुपये के नोट पर हस्ताक्षर वित्त सचिव और दो रुपये से 1000 रुपये तक के नोटों पर हस्ताक्षर रिज़र्व बैंक ऑफ इण्डिया के गर्वनर के होते हैं।


Thursday, November 15, 2012

आयोजन : सिर्फ बच्चों का टीकाकरण कर देने या वैक्सीन की दवा पिला देने से बाल कल्याण नहीं होने वाला डा. राष्ट्रबंध्ु

सिर्फ बच्चों का टीकाकरण कर देने या वैक्सीन की दवा पिला देने से बाल कल्याण नहीं होने वाला   डा. राष्ट्रबंध्ु  

बरेली. बाल साहित्य अब समाचारपत्रों से नदारद होता जा रहा है. उनकी जगह अब सूचनात्मक आलेखों ने ली है. टीवी चैनल्स अब बच्चों को फूहड़ तरीके से हंसाने की कोशिश कर रहे हैं. उनके कार्यक्रमों में नैतिकता, देशभक्ति, संवेदनशीलता और सामाजिक सांस्कृतिक पहलू नदारद हैं.सरकार मिड - डे मील पर तो, अरबों रुपये खर्च कर रही है, मगर बाल साहित्य को बढ़ावा देने के लिए उसके पास कोई योजनाएं नहीं हैं. यह कहना है भीलवाड़ा राजस,
्थान से प्रकाशित पत्रिका 'बाल वाटिका' के संपादक डा. भैरूंलाल गर्ग का. वे मुख्य अतिथि के रूप में तितली सोसाइटी पफॉर चिल्ड्रेन वेलपफेयर द्वारा आयोजित संगोष्ठी 'बाल साहित्य पर मीडिया का प्रभाव' पर अपने विचार व्यक्त कर रहे थे. 
डा. भैरूंलाल गर्ग को इस मौके पर 'मो. वली खां स्मृति संपादक शिरोमणी तितली 2012 सम्मानः 'एवं प्रमुख बाल साहित्य आलोचक डा. विक्रम सुरेन्द्र को 'रियासत अली खान स्मृति बाल साहित्य सृजन तितली 2012 सम्मानः' से सम्मान पत्रा एवं स्मृति चिन्ह के साथ शाल उड़ाकर सम्मानित किया गया. इस मौके पर मासिक बाल समाचारपत्रा 'जूनियर नाइट' का विमोचन पियासी किया गया. 
कार्यक्रम स्वागताध्यक्ष विकास अग्रवाल ने स्वागत भाषण पढ़ा और सभी अतिथियों एवं आगुन्तकों का अभिवादन किया. 
रोटरी भवन में आयोजित इस कार्यक्रम में देश भर से बाल साहित्यकार जुटे और बाल साहित्य के प्रचार - प्रसार को बढ़ावा देने पर बल दिया. कानपुर से आये 'बाल साहित्य समीक्षा' के संपादक एवं वरिष्ठ साहित्कार डा. राष्ट्रबंध्ु ने कहा कि सिर्फ बच्चों का टीकाकरण कर देने या वैक्सीन की दवा पिला देने से बाल कल्याण नहीं होने वाला. बच्चों में ईमानदारी, मानवता और सदभावना और उनके नैतिक चरित्रा का विकास करना पियासी हमारी जिम्मेदारी है. तब तक देश को जीवन मूल्यों से जु़ड़े जिम्मेदार नागरिक नहीं मिलेंगे, हमारा कल्याण नहीं हो सकता है और इसमें मीडिया की महत्वपूर्ण भूमिका है. 
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे लखनऊ के वरिष्ठ बाल साहित्य आलोचक डा. विक्रम सुरेन्द्र ने कहा कि बच्चे बाल साहित्य से विमुख होते जा रहे हैं.उनमें किताबें पढ़ने की आदत कम होती जा रही है. इसमें बच्चों के मां - बाप बराबर के दोषी हैं. वे बच्चों के मंहगे गिफ्रट आइटम तो खरीदकर देते हैं, मगर बाल पत्रिकाएं और पुस्तकें भेंट नहीं करते. साहित्यकारों की भी जिम्मेदारी है कि वे बड़े ही सहज और रोचक ढंग से लिखें. उनके वैज्ञानिक दृष्टिकोण बड़े ही परिपक्व होने चाहिए. 
बाल साहित्यकार निर्मला सिंह ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि विदेशांे में ट्रेन या बस के सफर के दौरान बच्चों के हाथों में किताबें दिखाई देती हैं और यहां के बच्चे मोबाइल पर गेम खेल रहे होते हैं. 
शाहजहांपुर के बाल साहित्य समीक्षक एवं युवा साहित्यकार डा. नागेश पांडेय 'संजय' ने कहा कि मीडिया की अतिआध्ुनिकता के कारण बाल साहित्य अपने मूल उद्देश्य से विमुख हो रहा है. परिणामस्वरूप बच्चे जीवन मूल्यों से कट रहे हैं और वे भौतिकतावादी आंध्ी का शिकार हो रहे हैं. 
संस्था की अध्यक्ष डा. मोनिका अग्रवाल ने कहा कि बच्चों का मन कोमल होता है. माताओं को चाहिए कि वे बचपन से ही बच्चों को लोरियों और बाल गीतों के माध्यम से संस्कारवान बनायें. मगर आज की माताओं को पहले जैसे शिशु गीत और लोरियां भी कहां याद हैं. 
चर्चित लेखिका डा. करुणा पांडेय ने कहा कि एकल परिवारों के चलन ने बच्चों को अकेला कर दिया. दादी - नानी की कहानियां पियासी अब बच्चों को कौन सुनाता है. बच्चे टीवी देखकर वक्त गुजारते हैं. 
संस्था के सचिव फहीम करार ने कहा कि दरअसल बच्चों को सही दिशा नहीं मिल पा रही है. मां - बाप के पास बच्चों के लिए समय ही नहीं है.इलेक्ट्रानिक्स गैजेट्स ही अब उनके दोस्त हैं. अब मशीन से दोस्ती करके बच्चा मशीन ही बनेगा. घर के बड़े - बूढ़ों को बच्चों के साथ अनुभव बांटना चाहिए, ताकि बच्चा सामाजिक बन सके. 
कार्यक्रम के आखिर में बाल कविता पाठ का आयोजन पियासी हुआ. कृष्णा खंडेलवाल, रमेश गौतम, इंद्रदेव त्रिवेदी, कमल सक्सेना, शिखा चंद्रा आदि ने बाल काव्य पाठ किया. 
संचालन वरिष्ठ साहित्यकार इंद्रदेव त्रिवेदी ने किया. कार्यक्रम में प्रो. राम प्रकाश गोयल, डा. ममता गोयल, मुबीना खान, रोहित अग्रवाल 'हैंग', डा.कामरान खान, रमेश गौतम, पूनम सेवक, रबीअ बहार, मिस्रेयार, मुबीन कैफ, गुल मदार आदि का विशेष सहयोग रहा.

सम्मान : वरिष्ठ फोटो जर्नलिस्ट उमेश शर्मा को तितली अवार्ड फॉर आर्टिस्टिक फोटोग्राफी 2007

दैनिक जागरण के वरिष्ठ फोटो जर्नलिस्ट उमेश शर्मा को तितली अवार्ड फॉर आर्टिस्टिक फोटोग्राफी 2007 सम्मान से नवाजते डॉ राजेश शर्मा कैप्टन धींगरा नजमा खान