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Monday, August 26, 2013

रंग बिरंगी बदली है












बाग बाग़ में डोल रही है
फूलों से कुछ बोल रही है

रंग बिरंगी बदली है
तितली है ये तितली है

छम छम नाच दिखाने वाली
सबके मन को भाने वाली

हरियाली और खुशहाली के
मीठे गीत सुनाने वाली

लगता है कोई पगली है
तितली है ये तितली है

डॉ राजेंद्र सिंह
नई बस्ती, कटनी (म. प्र.)

Tuesday, June 18, 2013

ब्रिटेन के शहर लेस्टर में एक कविता कार्यशाला....

ब्रिटेन के शहर लेस्टर में एक कविता कार्यशाला....




मित्रो

ब्रिटेन में बसने के बाद हिन्दी भाषा और साहित्य के प्रति बहुत से कार्य करने का अवसर मिलता रहा है। किन्तु हाल ही का अनुभव एक मामले में अनूठा रहा जहां लेस्टरशायर के लिण्डन प्राइमरी स्कूल के बच्चों के साथ मुझे एक कविता कार्यशाला (Poetry Workshop) करने का अवसर मिला। इस कार्यशाला का आयोजन Leicester Multi Cultural Association द्वारा किया गया था। यहां मेरा लिंक-पाइन्ट श्री विनोद कोटेचा हैं।

इस प्रोजेक्ट के तहत मुझे अपनी ही पचास कविताओं का हिन्दी से अंग्रेज़ी में अनुवाद करना है और लेस्टर के स्कूली बच्चों के साथ एक कविता कार्यशाला भी करनी थी।

स्कूल के प्राध्यापक श्री मुहम्मद ख़ान, नैरोबी से ब्रिटेन आए एक भारतीय मूल के व्यक्ति हैं जिनके साथ हुई मुलाक़ात मुझे बरसों तक याद रहेगी। विद्यार्थियों के प्रति उनका पॉज़िटिव और सृजनात्मक रवैया देख कर बहुत कुछ सीखने को मिला। मुझे सबसे अधिक हैरानी यह देख कर हुई की श्री ख़ान को प्रत्येक विद्यार्थी का नाम याद था और वे सभी विद्यार्थियों को उनके पहले नाम से पुकार रहे थे। उस स्कूल में गोरे, काले, चीनी, अरबी, एव भारतीय उपमहाद्वीव आदि सभी स्थानों के बच्चे मौजूद थे

स्कूल के मुख्य द्वार पर गुजराती, उर्दू, पंजाबी, अरबी, एवं अंग्रेज़ी में स्वागतम लिखा था। थोड़ा असहज हो गया क्योंकि वहां हिन्दी नदारद थी। मेरा प्रयास रहेगा कि जल्दी ही वहां हिन्दी भाषा में भी स्वागतम लिखा जाए।

मुझे पंद्रह-पंद्रह विद्यार्थियों के दो गुटों के साथ कविता की कार्यशाला करनी थी। उन्हें कविता की यात्रा सरल शब्दों में बताते हुए ब्रिटेन के हिन्दी कवियों के विषय में जानकारी देनी थी। उन्हें यह भी समझाना था कि कविता की बुनावट कैसी होती है; कविता के शब्द कैसे होते हैं; कविता में शब्दों की मित्वययता का महत्व क्या है... आदि, आदि। प्रवासी कविता किस प्रकार प्रवासियों एवं स्थानीय लोगों में एक पुल का काम कर सकती है।

मैनें विद्यार्थियों को दावत दी कि वे चाहें तो अपनी मातृभाषा यानि कि गुजराती, उर्दू, हिन्दी या अरबी भाषा में कविता लिखने का प्रयास करें। मगर मैनें पाया कि अधिकतर विद्यार्थी अपनी मातृभाषा समझ तो पाते हैं... किसी तरह थोड़ी थोड़ी बोल भी लेते हैं... मगर लिखने का अभ्यास उन्हें बिल्कुल भी नहीं है। फिर भी एक बच्ची ने अपनी मातृभाषा अरबी में कविता की पहली दो पंक्तियां लिखीं और बाक़ी की कविता अंग्रेज़ी में पूरी की... मैनें अपनी हिन्दी कविताओं के साथ साथ उनका अंग्रेज़ी अनुवाद भी पढ़ा।

कार्यशाला खुले में स्कूल द्वारा निर्मित एक छोटे से जंगल में भी हुई... फिर एक गोलमेज़ के इर्दगिर्द भी हुई और अंततः स्कूल के एसेम्बली हॉल में जा कर मेरे अंतिम वक्तव्य के साथ समाप्त हुई जहां बच्चों ने अपनी कर्यशाला में लिखी कविताएं पूरे आत्मविश्वास से सुनाईं।

कुल मिला कर यह एक अद्भुत अनुभव रहा। मैं इसके लिये Leicester Multi Cultural Association के श्री विनोद कोटेचा (कोषाध्यक्ष), श्री गुरमैल सिंह (अध्यक्ष), सुनीता परमार, प्राध्यापक श्री मुहम्मद ख़ान एवं बीबीसी के भूतपूर्व पत्रकार श्री दीपक जोशी का धन्यवाद करना चाहूंगा।

Thursday, February 21, 2013

प्रकाशन: यह क्या हो गया

वर्ष 2003 में डायमंड बुक्स द्वारा प्रकाशित इस कहानी संग्रह में मेरी तब तक की 12 चुनिंदा कहानियां शामिल हैं। 
इसकी सजिल्द क़ीमत रखी गई थी रु.150 मात्र जबकि पेपर बैक केवल रू.60 की है...


Wednesday, February 6, 2013

शीघ्र बहाल होंगे उ0प्र0 हिन्‍दी संस्‍थान के बाल साहित्‍य सम्‍मान

 शीघ्र बहाल होंगे उ0प्र0 हिन्‍दी संस्‍थान के बाल साहित्‍य सम्‍मान ।।

लखनऊ। आज देश में चारों ओर जो चरित्र का संकट दिखाई पड़ रहा है, इसका समाधान बाल साहित्य में निहित है। अगर हम बच्चों को बाल साहित्य उपलब्ध कराएं, तो उससे उनके व्यक्तित्व का समुचित विकास तो होगा ही हमारा समाज भी एक स्वस्थ समाज के रूप में निर्मित हो सकेगा। पर दुर्भाग्यवश हमारे देश में ऐसा नहीं होता है। हमारे यहां बाल साहित्य को दोयम दर्जे का माना जाता है। हम विदेशों की तुलना में एक चौथाई भाग भी इसपर ध्यान नहीं देते हैं, जिसका दुष्परिणाम हमें चारों ओर दिखाई पड़ रहा है।

उपरोक्त बातें उ.प्र. हिन्दी संस्थान के कार्यकारी अध्यक्ष उदय प्रताप सिंह जी ने बाल साहित्यकारों के प्रतिनिधि मण्डल के समक्ष कहीं। वे 1997 में बंद हुए 10 बाल साहित्य सम्मानों को चालू कराने हेतु ज्ञापन देने आए स्थानीय बाल साहित्यकारों के दल को सम्बोधित कर रहे थे।

मम्मी लोरी गाओ तुम!


















मम्मी लोरी गाओ तुम,
हौले हौले थपकी देकर,
मुझको अभी सुलाओ तुम ।

नींद मेरी अंखियों में कैसे,
परियाँ आकर भरतीं हैं,
चंदा के रथ पर मेरे संग,
सैर वो कैसे करतीं है,
मुन्ना, बबुआ के सम्बोधन
से अब मुझे बुलाओ तुम ।।

तेरे आँचल की छैयां में,
मैं निर्भय हो जाऊँ गा,
तेरा प्यार भरा चुंबन पा
मैं जल्दी सो जाऊँ गा,
अब कुछ क्षण तक मम्मी मेरे
साथ में भी सो जाओ तुम ।।


शरद तैलंग 

Tuesday, February 5, 2013

बाल गीत : नीले- नीले आसमान में













अलका सिन्हा
नीले- नीले आसमान में
देखो उड़ती लाल पतंग।

इक पतली सी डोर सहारे
पूरब पश्चिम खूब निहारे
देख हवा से होड़ लगाते
रह जाते पंछी भी दंग।


कभी अटक पुच्छल तारे- सी
कभी यह लाल अंगारे- सी
गोल -गोल ये भँवर बनाती
नए- नए करतब के ढंग।

जात -धर्म का भेद न माने
ये तो केवल उड़ना जाने
हिन्दू –मुस्लिम- सिख उड़ाएँ
उड़ती जाए सबके संग।

नीले- नीले आसमान में
देखो उड़ती लाल पतंग।

Thursday, January 3, 2013

बाल गीत : पापा हमें बताओ न















पापा हमें बताओ न,
बात हमें समझाओ न।

बोले पापा ऐ बच्चों!
अगर गिने ही न हम तो।

कितने दिन बढ़ जायेंगे ,
हम कैसे गिन पाएंगे।

बहुत पुराना है किस्सा ,
कलेंडर का जन्म हुआ .

एक वर्ष में बारह माह,
सात दिनों का एक सप्ताह।

लेकिन एक महीने में,
दिवस भिन्न-भिन्न है रखे।

तीन सौ पैसढ़ दिन हों जब,
एक साल लो निकला तब।

इसी तरह गिनते-गिनते ,
दिन,माह,वर्ष आगे बढ़ते।

अब समझे तुम नन्मुन जी,
ये सुविधा है गिनती की।

शिखा चन्द्रा